अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिहाज से जी-20 का बाली शिखर सम्मेलन भारत के लिए काफी अहम रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं, हम सब भारतीयों ने उस वक्त गौरवान्वित महसूस किया, जब इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने समापन समारोह में भारत को जी-20 की अध्यक्षता सौंपी। राष्ट्रपति विडोडो बधाई के पात्र हैं कि उनकी अध्यक्षता में जी-20 शिखर सम्मेलन का समापन सफलतापूर्वक हुआ। भारत आगामी 1 दिसंबर से अपना कार्यभार संभालने जा रहा है और अगले एक साल में वैश्विक समस्याओं के समाधान में अपनी विशेषज्ञता वह विश्व से साझा कर सकेगा। हालांकि, इंडोनेशिया की इस जी-20 बैठक की एकमात्र यही उपलब्धि नहीं है।
बाली शिखर सम्मेलन की सबसे बड़ी सफलता यूक्रेन युद्ध के खिलाफ आम सहमति बनना है। इसका अर्थ है कि बतौर सदस्य राष्ट्र रूस भी इस तथ्य से सहमत है। इससे परिस्थिति काफी दिलचस्प बन गई है। विश्व को युद्ध से बचाना काफी जरूरी है। यही कारण है कि शिखर सम्मेलन में मौजूद सभी नेताओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि युद्ध का विश्व-व्यवस्था में कोई स्थान नहीं। यदि जंग चलती रही, तो प्रमुख वैश्विक समस्याओं का समाधान और जटिल हो जाएगा। भारत की भी यही चिंता थी कि यह युग युद्धों का नहीं है, इसलिए इससे हमें बचना होगा। सुखद है कि जी-20 के घोषणापत्र में लगभग सभी प्रमुख वैश्विक मसलों का जिक्र किया गया है, इसलिए इसमें जो वैश्विक सहमति दिखाई दे रही है, वह नई विश्व-व्यवस्था को लेकर उम्मीद जगाती है। भारत को इसके आधार पर आगे बढ़ना चाहिए और कुछ नई पहल के साथ इसका नेतृत्व संभालना चाहिए।
जी-20 का इस मुकाम तक पहुंचना आसान नहीं था। यह बेशक ऐसा समूह है, जिसने अमूमन वैश्विक आर्थिक संकट के समय समाधान पेश किया है, लेकिन अब इसका दायरा बहुत बढ़ गया है। कुछ आंतरिक चुनौतियों से भी यह जूझ रहा है। जैसे, बाली में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शिरकत नहीं की। और तो और, इस बार संयुक्त घोषणापत्र भी काफी ऊहापोह के बाद जारी हो सका। फिर, रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में इस संगठन के अस्तित्व पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। दरअसल, कोई एक संगठन अब विकराल हो चुकी वैश्विक समस्याओं का निदान नहीं निकाल सकता। इसके लिए सामूहिक प्रयास की दरकार होती है। जी-20 समूह के पास कोई वैधानिक ताकत भी नहीं है, वह तो सिर्फ प्रस्ताव पारित कर सकता है। ऐसे में, भारतीय प्रधानमंत्री ने उचित ही मास्को और कीव से संघर्ष-विराम पर सहमति बनाने तथा विवादों का समाधान बातचीत व कूटनीति के जरिये करने की बात कही। जी-20 के सदस्य देश चाहें, तो वे यहां एक दबाव-समूह के तौर पर काम कर सकते हैं।
जाहिर है, अगले एक साल के लिए नई दिल्ली को एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। एक तरफ, जी-20 के भीतर ही सदस्य देशों में बढ़ रहे तनाव व नई विश्व-व्यवस्था को लेकर कुछ सदस्यों की विस्तारवादी सोच से भारत को जूझना होगा, तो दूसरी तरफ, वैश्विक तनाव, बिगड़ती अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव, बहुपक्षवाद का वकालत करने वाली वैश्विक संस्थाओं की निष्क्रियता, महामारी जैसी समस्याओं से भी उसे पार पाना होगा। इसमें जरूरत होगी नई सोच, नई नीति, प्रभावी नेतृत्व और वैश्विक आम राय की।
वसुधैव कुटुंबकम् थीम पर आधारित भारत की अध्यक्षता निश्चय ही इसमें मददगार साबित हो सकेगी। भारत इस संगठन के जरिये ‘एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य’ का संदेश देना चाहता है। इसमें वैश्विक कल्याण और विश्व शांति की अपेक्षा की गई है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में विश्व को शांति की ओर बढ़ने का आह्वान किया। उन्होंने ऊर्जा के क्षेत्र में स्थिरता हासिल करने और खाद्यान्न संकट से पार पाने की भी वकालत की। प्रधानमंत्री मोदी ने बहुपक्षवाद के समर्थक संगठनों, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं में सुधार की अनिवार्यता पर भी बल दिया।
यह एक नई सोच दिखाता है। हालांकि, चुनौती के बावजूद यह अध्यक्षता भारत के लिए एक बड़ा अवसर है। वह तमाम सदस्य देशों के साथ मिलकर एक नई विश्व-व्यवस्था की परिकल्पना तैयार कर सकता है। साइबर अपराध से पार पाने, संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर कन्वेंशन को सफल बनाने, कौशल-निर्माण के लिए व्यापक फंड जुटाने, क्रिप्टोकरेंसी के लाभ-हानि को जांचने, गरीबी दूर करने के कामों में तकनीक का इस्तेमाल करने जैसे कई मसलों पर भारत दुनिया को नई राह दिखा सकता है। उम्मीद यह भी है कि इंडोनेशिया या इससे पहले इटली, जापान आदि में हुई जी-20 की बैठकों में पारित अच्छे प्रस्तावों को अमल में लाया जाएगा। इसकी अगली अध्यक्षता ब्राजील को मिलने वाली है। इंडोनेशिया, भारत और ब्राजील की ‘तिकड़ी’ सामूहिक रूप से नई विश्व-व्यवस्था की रूपरेखा तैयार कर सकती है और उसको लेकर एक वैश्विक सहमति बना सकती है।
स्पष्ट है, जी-20 की अध्यक्षता के दौरान भारत से बड़ी अपेक्षा रहेगी। यह अब महज अमीर देशों का संगठन नहीं रहा। इसमें विकासशील देश भी शामिल किए गए हैं। भारत वैश्विक दक्षिण और उसकी पीड़ाओं का प्रतिनिधित्व कर सकता है। अपनी अध्यक्षता के दौरान हम अफ्रीका, लातीन अमेरिका, एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया व विश्व के तमाम देशों से जुड़ सकते हैं और जी-20 की बैठकों में आमराय बना सकते हैं, ताकि यह संगठन संयुक्त राष्ट्र की मदद कर सके। संयुक्त राष्ट्र को सशक्त बनाने में जी-20 जैसे समूहों का सहयोग निहायत जरूरी है। इन संगठनों में आने वाले नए-नए विचार और प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में सुधार की राह प्रशस्त कर सकेंगे।
भारत की अध्यक्षता के दौरान 200 के करीब आधिकारिक और लगभग 500 गैर-सरकारी बैठकें होंगी। इससे गैर-सरकारी लोग व संगठन भी आसानी से जुड़ सकेंगे। यह एक अच्छा मौका होगा यह जानने का कि नई विश्व-व्यवस्था को लेकर गैर-सरकारी लोगों और संस्थाओं की क्या अपेक्षा है। भारत उनकी कल्पना को जी-20 की अध्यक्षता के दौरान दुनिया के सामने पेश कर सकता है। चूंकि नए शीत युद्ध का खतरा सामने है, इसलिए दुनिया को बचाने में जी-20 और भारत अहम भूमिका निभा सकते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2022/november/17/bharat-ko-milli-adhyakshta-se-umeedei
[2] https://www.vifindia.org/author/arvind-gupta
[3] https://newsonair.com/hindi/2022/11/16/g-20-chairmanship-india-co-s/
[4] https://www.livehindustan.com/blog/story-hindustan-opinion-column-17-november-2022-7364212.html
[5] http://www.facebook.com/sharer.php?title=भारत को मिली अध्यक्षता से उम्मीदें&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/NPIC-20221116141942.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2022/november/17/bharat-ko-milli-adhyakshta-se-umeedei
[6] http://twitter.com/share?text=भारत को मिली अध्यक्षता से उम्मीदें&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2022/november/17/bharat-ko-milli-adhyakshta-se-umeedei&via=Azure Power
[7] whatsapp://send?text=https://www.vifindia.org/article/hindi/2022/november/17/bharat-ko-milli-adhyakshta-se-umeedei
[8] https://telegram.me/share/url?text=भारत को मिली अध्यक्षता से उम्मीदें&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2022/november/17/bharat-ko-milli-adhyakshta-se-umeedei