अमेरिका का राजनीतिक रूप से चीन के विरुद्ध होना महाशक्ति के रूप में उसके उदय में एक महत्त्वपूर्ण बाधा रहा है। इसने देशों के समूह की गतिशीलता फायदा उठाते हुए चीन को उसकी हर दुस्साहसिकता को चुनौती देने का भरसक ठोस प्रयास किया है। इसके पहले चीन ने अपने पक्ष में बने मैत्रीपूर्ण अंतरराष्ट्रीय माहौल का भरपूर लाभ उठाता रहा है, पर वह स्थिति अब बदल गई है। दुनिया में चीन के क्रिया-कलापों पर नजर रखने वालों की फौज अब उसे संदेह की नजरों से देखने लगी हैं, इसके विरोध में उसकी तरफ से की जाने वाली बयानबाजी की लगातार निगरानी की जा रही है। लेकिन यह रुकावट तब पैदा की जा रही है, जबकि चीन कई मात्रात्मक मापदंडों पर अमेरिका से आगे निकलता जा रहा है, जिसे बदला नहीं जा सकता या उसे खारिज नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, अमेरिका की अपनी घरेलू परेशानियां बढ़ रही हैं और वहां के समाज का एक अस्थिर पक्षपातपूर्ण विभाजन हो गया है। इससे पता चलता है कि अमेरिका अब दुनिया में अजेय नहीं रह गया।
अमेरिकी असाधारणता और पश्चिमी सार्वभौमिकता के अभिमान पर असंगत दोहरीकरण से पता चलता है कि अमेरिका अपनी स्थानीय पहचान की एक आश्वस्त दुनिया के साथ तालमेल बिठाने में असमर्थ है। सभी राजव्यवस्था के मौलिक न्यूनतावाद ने समाज, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, और धर्म से लेकर लोकतंत्र बनाम उदारवाद-अनुदारवाद के साये में अधिनायकवाद ने जबरदस्त पाखंड के सार्वजनिक क्षणों में इसको अक्सर फंसाते हुए अमेरिकी ताकत को कमजोर किया है। यह तर्क दिया जाता है कि विकास व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि वह सभी के लिए अनुकूलन है। उस संदर्भ में, अमेरिका विसंगति और अलगाव (यहां तक कि जलवायु परिवर्तन में) बढ़ाने के सिवा नई विश्व व्यवस्था के लिए कोई प्रगतिशील विजन नहीं देता।
अब यहां चीन की संलग्नता और दुनिया के लिए उसके विजन पर सवाल उठते हैं, इसी में यह तथ्य भी अंतर्निहित है कि बाकी दुनिया चीन पर कितना भरोसा करती है। पेइचिंग की राजनीतिक-पद्धति एवं निर्णय लेने की प्रणाली में पारदर्शिता की कमी है, जिसके लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीपी) जिम्मेदार है, वही चीनी नेतृत्व को विश्व में अविश्वसनीय बनाती है। सीसीपी ने खुद की दीर्घायुष्ता सुनिश्चित करने के फेर में चीन की संस्थागत ताकत को कमजोर कर दिया है और अनौपचारिक सत्ता एवं पारस्परिक संबंधों के मॉडल पर भरोसा करना जारी रखा है। इसके चलते पार्टी को लगा कि उसे सब कुछ पर निरंकुश नियंत्रण करना चाहिए क्योंकि संगठन में किसी फैसले या विचार पर असहमति जताने या किसी मसले पर विफलता की कोई गुंजाइश ही नहीं है। इसके अलावा, चीन अपने समर्थकों एवं विरोधियों के बीच अपने विभिन्न एजेंडों के तहत रणनीतिक लाभ (势) उठाने और उसे बनाए रखने के लिए अन्य देशों की शक्ति और संस्थानों को खामख्वाह कमजोर करता है। चीन के इस लगातार भिड़ने वाले और जबरदस्ती के व्यवहारों को माफ नहीं किया जाता है। और दुनिया के बाकी हिस्सों के साथ अपने विशाल व्यापार और आर्थिक संबंधों में पूरक (ऐड-ऑन) फायदे के साथ, चीन की राजनीति आत्मविश्वास से लबालब है। खासकर महामारी के बाद के घटनाक्रमों ने चीन की आपूर्ति श्रृंखलाओं की ताकत को दुनिया के सामने उजागर कर दिया है। आत्मविश्वास में आए इस बदलाव को जनवरी 2020 में ट्रम्प के साथ पहले चरण के व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के समय लु हे की विनम्र भंगिमा से लेकर मार्च 2021 में अमेरिका-चीन के बीच हुई उच्च स्तरीय वार्ता के दौरान यांग जेची की अमेरिका को कड़ी फटकार लगाने में महसूस किया जा सकता है। फिर भी, चीन नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए तैयार नहीं है जबकि वह लगभग ऐसी भूमिका निभाता ही रहा है।
और मुद्दा यह है कि कोई बढ़ती शक्ति कभी तैयार नहीं होती है। चीन व्यावहारिक रूप से किसी भी सैन्य प्रदर्शन से अभी कुछ समय दूर है या वह अपनी मुद्रा युआन को एक रिजर्व करेंसी बनना चाहता है। तमाम बयानबाजी के बावजूद, अगर चीन युआन को आक्रामक रूप से अंतरराष्ट्रीयकरण करना चाहता है, तो उसे बस इतना करना है कि वह संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ इसकी शुरुआत करते हुए दुनिया को युआन में अपने सामान का भुगतान करने के लिए कहना शुरू करें। लेकिन उसे अच्छे से वाकिफ होना चाहिए कि एक बड़े निवेश और ऋण की तरफ उन्मुख अर्थव्यवस्था के लिए एक अधिमूल्यित युआन क्या करेगा। इस प्रकार, शी जिनपिंग ने अंतरराष्ट्रीय एवं घरेलू क्षेत्र में दोहरे परिसंचरण के साथ घरेलू खपत में वृद्धि पर लगातार जोर दिया है। हैनान द्वीप में पहले घरेलू कर-मुक्त खरीदारी क्षेत्र लागू करने में कुछ सफलता मिली है,लेकिन सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में निजी खपत बेहद कम बनी हुई है। अमेरिका की 70 फीसद की तुलना में यह चीन के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 40 फीसद ही है। सैन्य दुस्साहसिकता के मोर्चे पर, सीसीपी को मालूम है कि किसी भी विफलता या भारी नुकसान की स्थिति में पीछे लौटने का कोई सवाल ही नहीं है। हालांकि चीन ने अभी तक सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार नहीं किया है कि भारत के साथ गॉलवान बॉर्डर पर हुई झड़प में उसके कितने सैनिक हताहत हुए हैं। वैसे राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए वास्तविक युद्ध से कमतर सभी उपायों का सहारा लेना किसी देश की एक सांस्कृतिक-रणनीतिक प्राथमिकता भी होती है। उस एवेन्यू में, अमेरिका को चीन ने कई मील पीछे छोड़ दिया है। अंतरराष्ट्रीय संबंध समुदाय अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की खोज में चीन के धोखे, अनुशासन और धैर्य को शिरोधार्य करने लगे हैं।
यहां तक कि 800 अरब डॉलर के अपने भारी-भरकम रक्षा बजट के साथ अमेरिका को चीन के साथ बराबरी करना मुश्किल हो रहा है, जिसका कि रक्षा बजट 230 अरब डॉलर का ही है।
किन्हीं जहाजों, मिसाइलों, जेट्स विमानों आदि की तादाद के जरिए किसी देश पर सैन्य बढ़त हासिल करना मुश्किल है। लेकिन चीन का क्वांटम से लेकर अंतरिक्ष तक संभावित उच्च तकनीक युद्ध में अमेरिका को पछाड़ने तथा अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को परमाणु प्रतिरोध क्षमता से लैस करने का दृढ़ संकल्प गंभीर चुनौतियां पेश करता है। इसके अलावा, दुनिया के सबसे बड़े विनिर्माण और व्यापारिक देश में बड़े पैमाने पर नागरिक-सैन्य संलयन और विस्तारवाद और अपरिवर्तनीयता के बीच इसकी निरंतर धुंधली रेखाएं हैं। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के माध्यम से चीन की निवेश शक्ति इसकी व्यापक राष्ट्रीय शक्ति में इजाफा करती है। दक्षिण एशिया में पाकिस्तान से लेकर श्रीलंका तक बीआरआई को मिली विफलताओं के बावजूद यह नतीजा निकालना एकदम फिजूल होगा कि बीआरआई पूरी दुनिया में फेल हो गई है। हालांकि यह सही है कि कोरोना महामारी के बाद से बीआरआई निवेश धीमा हो गया है। फिर भी, मार्च 2022 तक, चीन के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करके बीआरआई में शामिल होने वाले देशों की संख्या तादाद बढ़कर 146 हो गई है।[1] इसके अलावा, चीन ने बीआरआई को रूपांतरित करते हुए उसमें आधारभूत संरचनागत क्षेत्रों के अलावा, स्वास्थ्य, डिजिटल, अंतरिक्ष, हरित रेशमी सड़कों आदि शाखाओं को शामिल कर लिया है। इसने अन्य देशों को भी प्रतिस्पर्धात्मक पहल करने के लिए प्रेरित किया है, पर वे उससे हाथ मिलाने में असमर्थ हैं।
चीन ने व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) से लेकर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी), डिजिटल इकोनॉमी पार्टनरशिप एग्रीमेंट (डीईपीए) आदि के लिए लगभग हर प्रमुख क्षेत्रीय व्यापारिक समझौते के आवेदन को आगे बढ़ाया है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने CPTPP के मामले में इसको रेखांकित किया है कि औद्योगिक सब्सिडी और सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों पर चर्चा करने के लिए चीन ने विकल्प खुले रखें हैं। यह उल्लेखनीय है क्योंकि चीनी राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों के प्रभुत्व ने अब यूरोप जैसे मुक्त बाजार समर्थकों को अर्थव्यवस्था में एक बड़ी सरकारी भूमिका की रूपरेखा तैयार करने के लिए प्रेरित किया है। दूसरी ओर, अमेरिका एक नए व्यापारिक प्रतिमान को परिभाषित करने के लिए संघर्ष कर रहा है क्योंकि अनपेक्षित व्यापार अमेरिकी घरेलू राजनीति में एक गंभीर मसला बन गया है। श्रमिकों के कल्याण के प्रति अमेरिकी सरकार के फिक्रमंद नहीं होने से वहां बड़े पैमाने पर सार्वजनिक असंतोष छा गया है। हिंद प्रशांत इकोनॉमिक फ्रेमवर्क जिसे इसी महीने घोषित होने की उम्मीद है, उसने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि इसका बाजार पहुंच को लेकर कोई अनुबंध नहीं है। अभी यह देखना बाकी है इसे हासिल कैसे किया जाएगा। हालांकि रूस-यूक्रेन संघर्ष ने ट्रान्साटलांटिक संबंधों को पुनर्जीवित कर दिया है, विशेष रूप से सुरक्षा क्षेत्र में, तो अनिवार्यतः यूरोपीय साझेदार भी कुछ बिंदु पर बड़े आर्थिक सहयोग संबंध के लिए जोर देंगे। जर्मनी ने पहले से ही नए ट्रान्साटलांटिक ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट पार्टनरशिप (TTIP) वार्ता के लिए कहा है जो कई वर्षों से अधर में है।[2]
चीनी कूटनीति विभिन्न भू-राजनीतिक क्षेत्रों जैसे ओशिनिया, यूरेशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका तक पहुंचने बनाने को लेकर उत्साहित है, जिन्हें लंबे समय तक पश्चिम द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया है। इसके अलावा, अमेरिका से बढ़ते अलगाव ने चीन को मध्य पूर्व के सभी महत्त्वपूर्ण देशों में एक क्षेत्रीय मध्यस्थ के रूप में उभरने का अवसर दिया है। पेइचिंग ने उन देशों की आपसी क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता में उलझे बिना उनके साथ बेहद सावधानी से संबंध बनाए हैं। चूंकि चीन इस क्षेत्र का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और ऊर्जा खरीदार बन गया है, इसलिए वह इस क्षेत्र में लगातार तनाव बने रहने की मूल वजह अमेरिकी हस्तक्षेप को बताते हुए अपने को अमेरिका से बेहतर बताता है। चीन की सफल कूटनीति ने इसे सऊदी अरब के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम का समर्थन किया है, और उसी अवधि में ईरान के साथ $400 बिलियन, 25 साल के रणनीतिक समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए इजरायल के साथ मुक्त व्यापार समझौते की बातचीत को आगे बढ़ाया है। इसने मध्यपूर्व को अपने क्षेत्रीय नेतृत्व वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) समूह से जोड़ने की बात की है। ईरान इसके एक सदस्य के रूप में शामिल हो गया है जबकि सऊदी अरब, मिस्र और कतर को संवाद भागीदार के रूप में शामिल किया गया है। चीनी कूटनीति की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि रूस के साथ बंधनरहित दोस्ती है। और जबकि चीन प्रतिबंधों के क्रॉसफायर में फंसने से बचता रहा है, पर उसका यह वास्तविक समर्थन क्रेमलिन से अनदेखा नहीं रहा है। दुनिया भर के सभी बड़े ऊर्जा उत्पादक देशों के साथ चीन के लगातार मजबूत संबंध अब बहुत खास हो गए हैं।
शिक्षा और नवाचार के घरेलू मापदंडों के संदर्भ में, चीन के दशकों से लगातार जारी प्रयासों और उसकी प्राथमिकताओं के नतीजे अब मिलने लगे हैं। प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टुडेंट्स एसेसमेंट (पीसा/ PISA) के लिए ओईसीडी से 2018 से मिले डेटा के मुताबिक चीन के चार प्रमुख मेनलैंड्स (पेइचिंग, शंघाई, जियांगसू और झेजियांग) को पठन-पाठन, गणित और विज्ञान में पहले स्थान पर रहे हैं जबकि अमेरिका पठन-पाठन में 13 वें स्थान पर, गणित में 37 वें और विज्ञान में 18 वें स्थान पर रहा। यहां तक कि चीन के दो विशेष क्षेत्र (हांगकांग और मकाऊ) भी शीर्ष पांच में शामिल थे। लेकिन यहां तक कि अगर हम पीसा की सूची से छह चीनी इकाइयों को हटाते हैं (यह मानते हुए कि शिक्षा की गुणवत्ता पर पूरी पीआरसी में बहुत विचलन है), अमेरिका अभी भी गणित में 34 वें और विज्ञान में 15 वें स्थान पर है। यह कथित तौर पर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय रखने वाले देश अमेरिका के लिए एक भयावह परिणाम है।[3] शिक्षकों, छात्रों और हमारे भविष्य के लिए दृष्टिकोण या फोकस के संदर्भ में चीनी शिक्षा आधुनिकीकरण 2035 योजना और अमेरिकी बिडेन योजना की तुलना करना मुश्किल है। लेकिन चीन ने अमेरिका की तुलना में शिक्षा पर 830 अरब डॉलर खर्च किए है जबकि उसने 2021 में 585 अरब डॉलर खर्च किए थे। शिक्षा के माध्यम से समावेश को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग नीतियों का होना भी आश्चर्यजनक हैं। चीन ने स्कूल के बाद कोचिंग और ट्यूशन की संस्कृति को कम करके छात्रों पर अकादमिक दबाव को कम करने की कोशिश की थी, जबकि अमेरिका नस्लवादी होने के कारण गणित के चरमपंथी आख्यानों को देखा है। विश्वविद्यालय शिक्षा के संदर्भ में, जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय, अमेरिका में सेंटर फॉर सिक्योरिटी एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (सेट) ने अगस्त 2021 की एक रिपोर्ट को देखना समीचीन है। रिपोर्ट का शीर्षक है "चीन फास्ट आउटस्पेसिंग यूएस स्टेम पीएचडी ग्रोथ।" इसमें निष्कर्ष निकाला गया कि चीन 2025 तक अमेरिका की तुलना में प्रति वर्ष अधिक स्टेम पीएचडी स्नातकों का उत्पादन करने की दिशा में अग्रसर है। यह तथ्य महत्त्वपूर्ण है क्योंकि चीनी विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले अधिकतर छात्र चीनी हैं जबकि अमेरिकी विश्वविद्यालयों अधिक अंतरराष्ट्रीय छात्र पढ़ते हैं।[4] हार्वर्ड के बेल्फर सेंटर से "ग्रेट टेक्नोलॉजिकल राइवलरी" पर दिसंबर 2021 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 21वीं सदी की प्रत्येक मूलभूत तकनीकों-कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सेमिकंडक्टर, 5G वायरलेस, क्वांटम सूचना विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी और हरित ऊर्जा क्षेत्र-में चीन जल्द ही विश्व का सिरमौर हो सकता है। कुछ क्षेत्रों में तो चीन पहले से ही एक नम्बर पर है।[5] अमेरिकी विशेषज्ञ खुद ही कहते हैं कि विनिर्माण, खनन, रसद और परिवहन के साथ अनुसंधान एवं विकास के एकीकरण में चीन का निर्णायक लाभ है। 5G का कवरेज एक पैरामीटर है, चीन के 5G की नकल अधिक चुनौतीपूर्ण होगी जिससे स्वचालित बंदरगाहों, औद्योगिक रोबोट, स्मार्ट शहरों और टेलीमेडिसिन काम करते हैं।[6] एक दिलचस्प तथ्य यहां उल्लेखनीय है। चीनी कंपनी हुवावेई जिसे अमेरिका ने प्रतिबंधित किया था, उसने पहले से ही मजबूत अपने शोध-अनुसंधान (आरएंडडी) में भारी निवेश किया है, और उसने 2021 के अंत तक 45,000 उत्पाद लाइनों में 110,000 से अधिक पेटेंट अपने नाम सुरक्षित कर रखा था।[7]
अंत में, यह कहना है कि वर्तमान क्षण जबकि चीन की उदगमता में से एक है, यह मौलिक रूप से अमेरिकी गिरावट में अनूदित नहीं करता है। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना चीनी राजनीतिक राज्य की एक आधुनिक अभिव्यक्ति हो सकती है, लेकिन उसकी एक राजनीतिक परंपरा है, जो कई सदियों से चली आ रही है। चीन इस बात से अवगत है कि ज़बरदस्ती एक हद तक ही चलायी सकती है, यह तो प्रतिष्ठा ही है, जो अंत में सभी राजनीति को रेखांकित करती है। चीन को उन क्षेत्रों में अपनी संलग्नताओं को स्थिर करने में कुछ समय की आवश्यकता है, जहां वह अच्छी तरह से काम कर भी रहा है (जैसे मध्य पूर्व, अफ्रीका, यूरेशिया, आदि) जबकि वह अपनी विफलताओं को समायोजित कर रहा है और अन्य क्षेत्रों में पीछे हट रहा है। चीन का अमेरिका एवं यूरोप के साथ असहज संबंध के साथ दक्षिण एशिया में पूरी तरह फेल हो जाना इसकी बड़े भू-राजनीतिक शख्सियत पर बट्टा लगा सकते हैं। ऋणोन्मुख कूटनीति और भारत के खिलाफ अकारण आक्रामकता चीनी इरादों के बारे में लाल झंडे लहराती है, जबकि पूर्वोत्तर और दक्षिण पूर्व एशिया में आर्थिक संबंध उत्साहित हैं, दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर के लिए सीमा पार तनाव से अपने समुद्री क्षेत्र में लंबे समय से सुरक्षा मुद्दों को संबोधित करने में असमर्थता आने वाले समय में समस्याओं का बड़ा पिटारा खोल सकती है। अनजाने में, चीन नए भू-राजनीतिक फ्रेमवर्क को और अधिक गति दे सकता है, जो इसके आधिपत्य का मुकाबला करना चाहते हैं। इस प्रकार, चीन को जल्द ही दुनिया के साथ समायोजित होने की आवश्यकता है, उसी तरह दुनिया को चीन के साथ सामंजस्य बिठाने की दरकार है।
[1]कंट्रीज ऑफ दि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव(बीआरआई), https://greenfdc.org/countries-of-the-belt-and-road-initiative-bri/ [3]
[2]जर्मनी कॉल्स फॉर फ्रेश यूएस ट्रेड टॉक्स एमिड यूक्रेन क्राइसिस एज यूके ‘ट्रांसअटलांटिक डॉयलॉग्स’ विगिन, https://www.export.org.uk/news/599595/Germany-calls-for-fresh-US-trade-talks-amid-Ukraine-crisis-as-UK-transatlantic-dialogues-begin.htm [4]
[3]एशिया टाइम्स: चाइना-यूएस कंटेस्ट विल कम डाउन टू एजुकेशन, https://asiatimes.com/2021/07/china-us-contest-will-come-down-to-education/ [5]
[4]सीएसईटी: चाइना इज फास्ट आउटपासिंग यूएस स्टेम पीएच.डी. ग्रोथ, https://cset.georgetown.edu/publication/china-is-fast-outpacing-u-s-stem-phd-growth/ [6]
[5]बेलफर सेंटर: चाइना विल सून लीड दि यूएस इन टेक्कनिक, https://www.belfercenter.org/publication/china-will-soon-lead-us-tech-0 [7]
[6]हाउ अमेरिका कैप कीप इट्स लीड इन टैक्नोलाजी, https://www.wsj.com/articles/china-us-tech-research-manufacturing-creativity-innovation-11639175960 [8]
[7]हुआवेई कम्स फर्स्ट इन पेटेंट एप्पलीकेशन फिल्ड विद यूरोपीयन पेटेंट ऑफिस, http://www.businesskorea.co.kr/news/articleView.html?idxno=91105 [9]
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Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English) [10]
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Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2022/may/25/america-per-china-ki-badhta-eske-agami-bhavi-prabhav
[2] https://www.vifindia.org/author/prerna-gandhi
[3] https://greenfdc.org/countries-of-the-belt-and-road-initiative-bri/
[4] https://www.export.org.uk/news/599595/Germany-calls-for-fresh-US-trade-talks-amid-Ukraine-crisis-as-UK-transatlantic-dialogues-begin.htm
[5] https://asiatimes.com/2021/07/china-us-contest-will-come-down-to-education/
[6] https://cset.georgetown.edu/publication/china-is-fast-outpacing-u-s-stem-phd-growth/
[7] https://www.belfercenter.org/publication/china-will-soon-lead-us-tech-0
[8] https://www.wsj.com/articles/china-us-tech-research-manufacturing-creativity-innovation-11639175960
[9] http://www.businesskorea.co.kr/news/articleView.html?idxno=91105
[10] https://www.vifindia.org/article/2022/may/13/china-is-edging-over-the-us-upcoming-ramifications
[11] https://cdn.i-scmp.com/sites/default/files/styles/wide_landscape/public/d8/video/thumbnail/2021/03/19/thumbnail_clip.jpg?itok=SsFmlSMf
[12] http://www.facebook.com/sharer.php?title=अमेरिका पर चीन की बढ़त: इसके आगामी भावी प्रभाव&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/thumbnail_clip_0.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2022/may/25/america-per-china-ki-badhta-eske-agami-bhavi-prabhav
[13] http://twitter.com/share?text=अमेरिका पर चीन की बढ़त: इसके आगामी भावी प्रभाव&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2022/may/25/america-per-china-ki-badhta-eske-agami-bhavi-prabhav&via=Azure Power
[14] whatsapp://send?text=https://www.vifindia.org/article/hindi/2022/may/25/america-per-china-ki-badhta-eske-agami-bhavi-prabhav
[15] https://telegram.me/share/url?text=अमेरिका पर चीन की बढ़त: इसके आगामी भावी प्रभाव&url=https://www.vifindia.org/article/hindi/2022/may/25/america-per-china-ki-badhta-eske-agami-bhavi-prabhav