नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा अप्रैल महीने में अपनी तीन दिवसीय (एक अप्रैल से तीन अप्रैल 2022) यात्रा पर भारत आए थे। देउबा जुलाई 2021 में पदभार ग्रहण करने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत आए थे। उनके साथ 25 सदस्यीय एक प्रतिनिधिमंडल भी आया था। प्रधानमंत्री देउबा की भारत यात्रा कई मायनों में अधिक परिणामदायक साबित हुई है। अव्वल तो यह कि वे पूर्व सरकार के काल में उपजे शक-शुबहा एवं मतभेदों को दूर कर परस्पर संबंधों में भारत को भरोसा दिलाने-जीतने में कामयाब रहे हैं तो दूसरी ओर नेपाल की आर्थिक तरक्की की कई योजनाओं पर भी भारत की रजामंदी हासिल की है। इससे यह उम्मीद बंधी है कि नेपाल-भारत संबंध फिर से पटरी पर हैं और दोनों ही देश मिल कर आगे बढ़ने के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
भारत को अहमियत देते हुए प्रधानमंत्री देउबा तो जनवरी में ही दिल्ली आने वाले थे, लेकिन कोविड-19 के बढ़ते मामलों के कारण यह निर्धारित यात्रा स्थगित कर दी गई थी। अब उनकी यात्रा एक ऐसे समय पर हुई है, जब पिछले तीन वर्षों में नेपाल ने भारत के साथ सीमा विवाद पर मुखर रुख अपनाया हुआ है। ऐसे में प्रधानमंत्री देउबा की भारत यात्रा नेपाल-भारत द्विपक्षीय संबंधों में बहुत महत्त्व रखती है।
यह सबको मालूम है कि नेपाल में देउबा के पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली ने भारत से सीमा विवाद को राजनयिक माध्यमों से हल करने की बजाय उसके राजनीतिकरण का विकल्प चुना था। ओली प्रशासन के दौरान नेपाल से भारत आने वाले उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडलों की संख्या भी पिछले तीन वर्षों में कम हो गई थी। इन मतभेदों के वातावरण के बीच, प्रधानमंत्री बने देउबा ने आते ही भारत के साथ गलतफहमी को दूर करने के प्रयास किए हैं और उनकी इस भारत यात्रा ने सहयोग के कई अन्य नए रास्ते खोले हैं। प्रधानमंत्री देउबा के पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद,अक्टूबर 2021 में नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री प्रकाश शरण महत के नेतृत्व में सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल भारत आया था, जो द्विपक्षी संबंधों को सुधारने में काफी कारगर रहा था।
प्रधानमंत्री देउबा की वर्तमान भारत यात्रा अधिक परिणामोन्मुखी साबित हुई है। पिछले सात दशकों के औपचारिक राजनयिक संबंधों में, भारत और नेपाल ने अपनी आर्थिक क्षमता को साबित किया है और भारत आज तक नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना हुआ है। हालाँकि, नेपाल से भारत को निर्यात की मात्रा कम होने के कारण, नेपाल के लिए यह एक बड़ा व्यापार घाटा साबित होता है और असमान व्यापार का यह मुद्दा उसके सामने एक चुनौती की तरह मौजूद है। इसलिए कि नेपाल में कई मौकों पर राजनीतिक दलों ने इसी व्यापारिक घाटे के मुद्दे को अपने राजनीतिक एजेंडे भी बना लिए हैं। हालाँकि, इस व्यापार असंतुलन को हल करने के लिए कोई फौरी राजनीतिक समाधान नहीं मौजूद हैं क्योंकि नेपाल के पास भारत को निर्यात करने के लिए पर्याप्त औद्योगिक उत्पादन नहीं है। इन चुनौतियों के बावजूद, दोनों देशों ने सहयोग के अधिक व्यावहारिक क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है। इनमें संपर्क (कनेक्टिविटी), ऊर्जा (एनर्जी), डिजिटल और आधारभूत ढाँचे का विकास (इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट) शामिल हैं।
कनेक्टिविटी वर्तमान समय में भारत-नेपाल सहयोग का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। एक भू-आबद्ध (लैंडलॉक्ड) देश के रूप में, नेपाल का अन्य देशों से व्यापार भारत के पश्चिम बंगाल में हल्दिया बंदरगाह और आंध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम बंदरगाह के माध्यम से होता है और आयातित माल भारत और नेपाल सीमा के बीच 22 निर्धारित व्यापार मार्गों के माध्यम से नेपाल पहुँचता है। सीमा व्यापार को एक बढ़ावा देने एवं सुचारु व्यापार की सुविधा को विस्तृत करने के लिए, प्रमुख व्यापारिक सीमा चेक पोस्टों को अपग्रेड करने के लिए काम किया जा रहा है। भारत की सहायता से दक्षिणी नेपाल में राजमार्गों के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने पर भी ध्यान दिया जा रहा है, जिससे यात्रा के समय एवं लागत में कमी आएगी।
सड़क के बुनियादी ढाँचे में सुधार के अलावा, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने नेपाल के साथ रेलवे कनेक्टिविटी को बहुत महत्त्व दिया है। चूंकि भारत के द्विपक्षीय संबंध मुख्य रूप से लोगों के बीच संबंधों पर आधारित हैं, इसलिए रेल संपर्क से साझा सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध में और बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। भारत की अपनी यात्रा के दौरान, प्रधान मंत्री देउबा ने संयुक्त रूप से बिहार के जयनगर से नेपाल में कुर्था तक के 35 किमी लंबे सीमा पार रेल लिंक का शुभारंभ और परिचालन का उद्घाटन किया। यह रेलवे मार्ग भारत से यात्रा करने वाले तीर्थयात्रियों को जनकपुर, जो कि हिंदू देवी सीता का जन्मस्थान है, के लिए कनेक्टिविटी प्रदान करने में एक मानक साबित होगा। जयनगर-कुर्था रेलवे मार्ग के माध्यम से माल ढुलाई सेवाएं भी व्यापार संबंधों को आगे बढ़ाने में योगदान देंगी। जयनगर-कुर्था खंड 68.7 कि.मी. लंबे जयनगर-बिजलपुरा-बरदीदास रेल लिंक का हिस्सा है, जिसे पूरी तरह से भारतीय सहायता से बनाया गया है, और अब तक, भारत ने इस परियोजना पर लगभग 550 करोड़ भारतीय रुपये खर्च किए हैं।
प्रधानमंत्री देउबा की भारत यात्रा का मुख्य आकर्षण विद्युत क्षेत्र पर विजन वक्तव्य बना जिसे दोनों प्रधानमंत्रियों ने संयुक्त रूप से दिया। विजन वक्तव्य के प्रमुख बिंदुओं में नेपाल में बिजली उत्पादन परियोजनाओं का संयुक्त विकास, सीमा पार बिजली पारेषण लाइनों का विकास, और सबसे महत्त्वपूर्ण द्वि-दिशात्मक बिजली व्यापार शामिल है, जो पारस्परिक लाभ और बाजार की मांगों के आधार पर दोनों देशों में बिजली उचित दरों पर पहुँचाने का काम करेगी। उल्लेखनीय है कि हिमालय से निकलने वाली अनेक नदियां नेपाल के रास्ते बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती हैं, लेकिन उन्नत तकनीक के साथ, ये नदियाँ नेपाल को बिजली उत्पादन में मदद प्रदान कर सकती हैं। नेपाल में उन्नत तरीके से किए गए बिजली उत्पादन का स्वयं उपभोग करने के साथ-साथ वह अतिरिक्त बिजली भारत और बांग्लादेश सहित पड़ोसी देशों को भी बेच सकता है, जो नेपाल की आर्थिक प्रगति के क्षेत्र में एक मजबूत मील का पत्थर साबित होगा। भारत पहले से ही नेपाल के साथ बिजली खरीदने के लिए सहमत हो गया है। ऐसे में नेपाल सरकार को इस मामले में देरी नहीं करनी चाहिए।
पिछले कुछ दशकों में, भारत ने पारस्परिक लाभ के लिए नेपाल की जलविद्युत क्षमता का पता लगाने की भी वकालत की है। वैसे पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना जैसी परियोजना पर 1996 में हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन आज तक उसकी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भी तैयार नहीं की गई है। इन चुनौतियों के बावजूद, दोनों सरकारें जलविद्युत क्षमता की संभावनाओं का पता लगाने की दिशा में काम कर रही हैं। हाल ही में, नेपाल में 900 मेगा वाट क्षमता वाले अरुण-थ्री जलविद्युत परियोजना में हुई प्रगति भी भारत-नेपाल की दूरगामी नीतियों की दिशा में एक स्वागत योग्य कदम है। साथ ही, 90 किमी लंबी 132 किलो वाट डीसी सोलू कॉरिडोर ट्रांसमिशन लाइन और भारत द्वारा विस्तारित क्रेडिट लाइन के तहत निर्मित सबस्टेशन का संयुक्त उद्घाटन सहयोग के इस क्षेत्र में परस्पर विश्वास को बढ़ाता है।
प्रधानमंत्री देउबा की भारत यात्रा के सकारात्मक और ठोस परिणाम मिलने के संकेत सामने आए हैं। यह यात्रा भारत और नेपाल के बीच 'विशेष संबंधों' को फिर से सक्रिय करती है। विशेष संबंधों को मजबूत करने के लिए उनमें सामायिक बदलावों की बहुत आवश्यकता है और प्रधानमंत्री देउबा की यह यात्रा इस संदर्भ में कारगर साबित हुई है। वहीँ, भारत के लिए यह यात्रा "नेबरहुड फर्स्ट नीति" के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं को भी दर्शाती है ।
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